Saturday 4 July 2020

गीतिका ---क्रमांक 4 आप बीती ,उड़ चली परदेश कृष्ण चरित, जन्माष्टमी, नारी

1 --( विधाता छंद) कृष्ण चरित,

मुझे अपने डराते हैं   ,    नहीं गैरों से 'डरती हूँ
मुसीबत वो खड़ी करते  , हमेशा मौन रहती हूँ......

कहूँ क्या बात अपनी मैं ,  सुना कोई नहीं करता
यत्न मेरा यही रहता , उलझनों से  मैं बचती हूँ ।......

  खफा  हमसे रहा करते ,पुरानी याद से चिपके
विचारों को नया  रखती,  किताबें  खूब पढती हूं।...


.सिमटती हूं बिखरती हूँ, अकेली हूँ करूँ क्या मैं
अमावस की निशा में मैं, बनी जुगनू चमकती हूं।........

बची है अनकही सी जो ,  रँगाती हूँ   कल्पना में
कलम से दोस्ती कर के ,कहानी बन सँवरती है।

शिकायत है नहीं हमको,  जमाने से कभी कोई
नए सपने गढ़ा करती  उन्ही से प्यार करती हूँ ।------

डॉ च नागेश्वर 
5 ,7 ,2020 

दोहा गीतिका🙏🙏🙏🙏🙏

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर
उन सभी दृश्य, अदृश्य ,जाने ,अनजाने
गुरु जनों को जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है -----
  हृदयतल से आभार सहित ------

कोटि नमन गुरु चरण में ,मन में भक्ति अपार
अनुभव मोती जो रखें, संग ज्ञान भंडार।

पंथी होता शिष्य तो,   दिखलावे  गुरु 
राह 
ज्योति मार्ग पर ले चलें, घोर तिमिर के पार।

कोई भी गुरु हो सके ,जिनसे मिलता ज्ञान
लगन अगन ही शिष्य का,बनता है 
आधार।

एकलव्य तो धन्य हुआ ,गुरु का कर सम्मान
काट अंगूठा  दे दिया, श्रद्धा  रखा 
अपार ।

चाकू छुरी व्यर्थ सभी, करे नहीं जो काम
गुरु होता वह सान है, धार करे हथियार।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

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डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
शंकर नगर
रायपुर छ ग
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मैं तो उड़ चली रे परदेश
मेरे दिल में बसा है देश

मेरी धरती   मेरा अम्बर
मन में बसा सारा परिवेश

आसमान में उड़ती जाती
नजरों से ओझल होता देश

सांसों में है इसकी खुशबू
जाने कब  लौटूं मैं   देश

इसकी मिट्टी-इसकी वायु
इससे बढ़कर नहीं विदेश

इसका कण कण मुझे बुलाता
रवि किरणें- देती  सन्देश

दिल के टुकड़े जा बैठे हैं
उनसे मिलने चली विदेश

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग

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कृष्ण चरित ::--/
हे  दामोदर हे  मुरली धर,
               सबके मन को भाते हो
मीरा के प्रभु नटवर नागर, 
              सबको नाच नचाते हो।

 घर में कमी नहीं माखन की,
                  घर घर चोरी करते क्यों

राधा के चितचोर तुम्हीं हो,
             मुरली मधुर बजाते हो।

बलदाऊ के छोटे भैया,
      हो नटखट  मनमोहन तुम
नाग नथैया असुर सँहारक,
           मन ही मन मुस्काते हो।

चीर हरण करते बचपन में
             खूब दिखाते लीला तुम
   वक्त पड़ा अक्षय चीर बढ़ा
                  अपना वचन निभाते हो।

प्रेम भक्ति के खातिर,
         ऊखल में भी बंध जाते
ग्वाल बाल संग धेनु चरा'ते, 
                       गीता ज्ञान बताते हो।

बड़े बड़े असुरों को मारे,
                      लाज बचाई नारी की
वासुदेव तुम कृष्ण मुरारी
                     दीन बन्धु कहलाते हो।
 
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
शंकर नगर छ ग
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जन्माष्टमी
जन्म दिवस गोपाल का,   लेकर आया भोर
अंतस में छवि श्याम की , मन आनंद विभोर।

भादों की है अष्टमी ,     खुशियों की बरसात
देख उजाला हो गया ,       पंछी करते शोर।

चरण  पखारे   कालिंदी ,  बाल  कृष्ण मुसकाय
पूनम के हैं चाँद प्रभु    ,      यमुना उठे हिलोर।

हर रिश्ते में रस भरें। ,      मुख मण्डल में तेज
जिधर पड़ें उनके कदम ,  होवे वहीं   अँजोर ।

करें शरारत खूब  वो,     हैं नटखट नंदलाल
मोहक छवि है कृष्ण की, देखें  सब उस ओर।

लीला धर तो  श्याम हैं ,  महिमा बड़ी अपार
शैशव में लीला करें  ,बन कर माखन चोर । 

भुवन मोहिनी रूप ले  , जग  को लिए लुभाय
  वश में  जिनके विश्व  है,  राधा चन्द चकोर।

तीन लोक के नाथ जो ,  जग  के पालनहार
गोप ग्वाल के प्रिय सखा, ब्रज के नंद किशोर।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
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नारी  ----1222 1222 
     
 वतन की  शान है नारी    
    प्रभाती गान है नारी।

तिमिर में दीप सी जल कर
बने  दिनमान है नारी ।

प्रगति का प्रतिमान बनकर ये
सृजन का सम्मान है नारी ।

  बने आधार जीवन का
सृष्टि का अभिमान है नारी।

असम्भव को करे सम्भव
अमर जयगान है नारी ।

लुटाती जिंदगी अपनी
करे बलिदान है नारी।

समझ पाया नहीं मानव
अबूझी ज्ञान है नारी ।

घरों की आन  बनती है
दिलों की अरमान ही नारी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
       सिवनी
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