Tuesday, 7 July 2020

मुक्तक क्रमांक एवम / गीतिका:--सावन पर गीतिका,दीपक जलता,दर्द नगरी से निकलकर ,नारी के दोहे ,सावन गीत,अभीर ्छन्द ,नव वर्ष पर आल्हा

( मात्रा भार 22 ) दि.7 ,7 ,2020
कहे लोग तो नारी एक पहेली है।   
चढ़ी नीम पर कड़वी खूब करेली है।
 यही जलेबी जो रिश्तों में रस भरती
सृजन शक्ति की यही मिसाल अकेली है।
फूल भरी लहराती मन को मोहे जो
घर आंगन की शोभा लता चमेली है।
जीवन में रस भरती सुख दुख की ये संगी
रिश्तों में बंधी पत्नी प्रिया सहेली है ।
सोच समझ कर रचा विधाता  धरती पर
प्रभु की रचना यह अलग और अलबेली है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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छुप गये झिलमिल तारे उषा ने खिड़की खोली 
चुपके  चुपके चपल सूर्य ने पलकें खोली ।
रंग रंग के  फूलों ने सजाया स्वागत द्वार 
उपवन में गूंजी चिड़ियों की मीठी बोली ।

            डा च नागेश्वर

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 मुक्तक ------
नयन मूंद तुम बैठे स्वामी, चलो भ्रमण को हम जाएं
कहो कौन हम बूझ रहे हैं , परिहास शिवा मन भाये।
सावन पावन प्रिय हमको है,धरती पर वक्क्त बिताएं
आंख मिचौली उमा करे है, मन ही मन शिव मुस्काएं

   भक्त तुम्हारे हैं संकट में,व्याकुल मन तुम्हें बुलाएं
  चलो नाथ नहीं  करो विलम्ब ,मन में जो आस लगाऐं।
    मंदिर मंदिर घण्ट नाद हो, गूँज  है नमः शिवाय की
     दुख हरो नाथ हे नीलकंठ, संकट से इन्हें बचाएं

काट काट कर देह देश का,करते थे व्यापार
कटा देश का हिस्सा था तब,गद्दी पर गद्दार।
दंश झेलते अंग भंग का ,तब थे बेबस वीर
कश्मीर अंश अब भारत का ,पलट किये जब वार।

दंड मिला है अंग भंग का,हालत  है गम्भीर
श्वांस चले उनके हैं लेकिन, बदली है तस्वीर।
तक्के में बैठे  अवसर के , भारत माँ के लाल
केश तिलक लगाये  हम हैं, सँवरी है तकदीर।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग 


(2)   ---------*--------------- *---  --------- *-------------

 प्रिये जाने दो मुझको,सरहद मुझे बुलाता है
 से लोहा लेना है , मन में उत्साह जगाता है।
सीना छलनी कर दुश्मन का,शीघ्र लौट मैं आऊँगा
 प्रथम धर्म है  सीमा रक्षा,माँ का कर्ज बुलाता है ।

                             2

जीवित रहा अगर खुशी खुशी ,  बांध के सेहरा आऊंगा
भारत माँ को तिलक लगा लूँ, फिर दुल्हन तुम्हें बनाऊंगा।
विजय तिलक कर भारत माँ को,फिर दुल्हन तुम्हें बनाऊं
रोको  ना  कसम तिरंगे की ,उसमें ही लिपटा आऊंगा ।
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दिनांक  10 /8/ 2020
आज का छंद - उपमान (सम मात्रिक)
विधान - कुल 23 मात्राएँ, 13,10 पर यति, अंत में गुरु गुरु उत्तम, यह छंद दोहा छंद से एक मात्रा कम करने पर बनता है।

सुंदर स्वस्थ विचार से। ,   बना कर्म पावन
कर्म सुपावन  जब  हुआ , महका भाव चमन।
इनसे पूरित देश  को ,      वंदन   है  माते
अमन शांति मय देश हो, जग लगे  सुहावन।
                             2
खुशियों की सौगात है, करें स्वीकार जी
जीवन की वीणा  कहे , करें झंकार जी।
मधुर ध्वनि की गूंज  उठे ,मन आनंद भरे
सुर मय हो संसार सब ,करें आभार जी।

                        3
सूरज देता रोशनी,खिलते हृदय सुमन
सुबह करें हम सैर तो,ताजा हो तन मन।
तन मन रहे प्रसन्न तो ,सुखमय हो जीवन
देश रहे खुश हाल तो ,जन्नत बने वतन ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
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हे क्रांति दूत है नमन तुम्हें
है कलम सिपाही नमन तुम्हें।
दीन जनों के साथी थे तुम
युग के निर्माता नमन तुम्हें ।

                  2
युग की धारा तुम ही बदले
कथा लिखें तो नायक बदले।
पीड़ित शोषित को वाणी दी
लेखन के सब मानक बदले।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
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आज का विशेष आयोजन 
आप सभी के समक्ष  मुक्तक सादर ......

🌺 राम भक्त आज हृदय हर्षाये हैं
आठों याम सिय राम धुन गाए हैं ।
करती सरयू है अभिषेक अवध का
जन्म भूमि पूजन प्रधान करवाये हैं
2

आज नगर में सब दीप जलाए हैं
जन्मभूमि पूजन का मुहुरत पाए हैं।
अभिलाषा पांच सदी की  पूर्ण हुई
जगत के  सब राम भक्त हर्षाये हैं।

3-----------/----------------///-/
भक्ति भाव से मन पुष्प चढ़ाए हैं
पर्व  दिवाली पांच अगस्त मनाए है।
है संघर्ष निरन्तर  दीर्घ काल का
भादो की द्वितिया पुण्य जगाए है।

डॉ चंद्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग

5 , /8 / ,2020

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मुक्तक मेला समारोह - 322 
1
पहेली सी जिंदगी है ये जान लो
कभी तो दूर कभी लगे पास मानलो।
 वक्त सदा एक रहता नहीं किसी का
वक्त की नजाकत की अब पहचान लो।
2

मुश्किल हुआ निभना, निभाना रिश्तों का
मुश्किल हुआ पटना, पटाना किश्तों का।
घटी है आय बढ़ी है भूख ख़र्चों की
दर्शन है दुर्लभ जमीं पर फरिश्तों का।

डॉ चंद्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ ग
8 /8 /2020

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                            4

काया माया में मन है  भरमाया
जब से दबे पाँव कोरोना आया।
जो बैठे थे जग में दिग्गज बनकर
 शक्ति मान जो उनका दिल दहलाया।
धन बल भुजबल सैन्य बल सब आहत
विवश सभी कोई बल काम न आया।
सूक्ष्म रुप धर  नृत्य करे  महा काल
सबके अंग अंग में दहशत छाया ।
तनसुख के खातिर पागल मानव ने
रीति नीति आचार विचार भुलाया।
सबके ऊपर परम शक्ति यह मान कर
जगत नियन्ता को अब शीश झुकाया
c N
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रयपुर छ ग
7 ,7 2020

गीतिका :--

[12/07, 3:31 pmदीपक क्यों जलता है 

                दीपक  तू क्यों जलता है 
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                 दीपक क्यों जलता है 
                दीपक  तू क्यों जलता है 
             सदा उजाला करता है 
        देवालय में आस प्रतीक तू बनता है 
          गिरजाघर में मौन पार्थना  करता है 
     ख़ुशी में घी  से भर कर जलता है 
   दुःख में तेल   भी   कम   पड़ता     है 
दीपक जब तू जलता है  ..... सदा उजाला करता है........
आंधी में जब तुझपे संकट आता है 
आँचल की ओट चाहता है 
वेग हवा का जब थम जाता 
उस आंचल को ही झुलसता है 
अंधकार में ही चमकता है ............. सदा उजाला करता है.......... 
सुबह -सुबह जब सूरज आता है 
तेरा तेज कहाँ   गुम हो जाता है 
क्या टू उसे नमन करता है 
सारे जग का जो तम  हरता है
आँख मीच इष्ट आराधन करता 
या प्रणव मन्त्र तू जपता है    ..... सदा उजाला करता है........
अंधकार की छाती में
 क्या तू कविता  लिखता है 
तरल तेल में भावों को रखता 
माटी के घेरे  में नया   छंद तू रचता है 
क भी तो जीवन गीत सुनाता  
या विरह राग तू   गाता है 
   डा चन्द्रावती

नए वर्ष में संकल्प नया,मन में भरा नया विश्वास
छोड़ पुरानी बातों को हम, लिख दें एक नया इतिहास।
नई रोशनी लाया सूरज,आलस त्यागो कहती भोर 
व्यर्थ न जाये अपना जीवन,इसका पल पल  है  इसका अहसास।
मुट्ठी में भर अपने सपने,कठिन नहीं है कोई काम ।
कल का तो है नहीं भरोसा ,सिर्फ आज है अपने पास।
औरों पर वश करना छोड़ें , हमको करना खुद में सुधार
धर्म मनुज का परहित करना,पूरा हो यह रहे प्रयास ।
 कर्ज चुकाना है धरती का ,इसका भी रखना है ध्यान
जीवन हो फूलों के जैसा, करे प्रसारित सदा सुवास।
 च नागेश्वर 
6 ,01,2021











शुभ विवाह की बेला आई 
वर वधु और प्रिय जन को बधाई 
,

बचपन से मैं सुनती आई 
बेटी की जात पराई 
अब सच में हुई पराई 
पर घर की हो जाउंगी 
कौन वहाँ मेरा अपना है 
मन के कोने का एक सपना है 
अनजानों को अपनाना है 
अपने थे उन्हें भुलाना है 
मै तो पारिजात की डाल हूँ
रात खिली सुबह मुरझाना है 
जो चुन ले प्यार से मुझको 
उन हाथों को महकाना है 
उसी डाल में नीड़ बनाना है 
चुनमुन को चहकाना है 
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
सेंटा क्लारा u s a है 
        देवालय में आस प्रतीक तू बनता है 
          गिरजाघर में मौन पार्थना  करता है 
     ख़ुशी में घी  से भर कर जलता है 
   दुःख में तेल   भी   कम   पड़ता     है 
दीपक जब तू जलता है  ..... सदा उजाला करता है........
आंधी में जब तुझपे संकट आता है 
आँचल की ओट चाहता है 
वेग हवा का जब थम जाता 
उस आंचल को ही झुलसता है 
अंधकार में ही चमकता है ............. सदा उजाला करता है.......... 
सुबह -सुबह जब सूरज आता है 
तेरा तेज कहाँ   गुम हो जाता है 
क्या टू उसे नमन करता है 
सारे जग का जो तम  हरता है
आँख मीच इष्ट आराधन करता 
या प्रणव मन्त्र तू जपता है    ..... सदा उजाला करता है........
अंधकार की छाती में
 क्या तू कविता  लिखता है 
तरल तेल में भावों को रखता 
माटी के घेरे  में नया   छंद तू रचता है 
क भी तो जीवन गीत सुनाता  
या विरह राग तू   गाता है 
   डा चन्द्रावती

Chandrawati Nageshwar:
      
 दर्द से रिश्ता 

        निकल कर  दर्द  नगरी से, द्वार  मेरे वो आया है .
       अतिथि तेरा हूँ  कह  कर के, पास मेरे वो आया है  ..
शरण वत्सल सी दिखती हो ,कह के दिल में समाया है.
पशो पेश में पड़ी थी मै.\, कर्तव्य पथ मुझको  दिखाया है  ..
        भाई सुख को सभी चाहें. दुःख को दुरदुराया  है ..
        कहीं भी ठौर न पाया  ,थका हारा वो आया है .
अनुज तेरा हूँ कह कर ,बहन का रिशता बनाया है .
चाहता हूँ नेह का बंधन , तेरा घर रा स आया है ..
          श्वान भी पीहर का हो तो ,बहन का प्रेम पाया है 
          ये दर्द  माँ के आँचल की अनमोल  सौगात लाया है ..

             डा च .नागेश्वर 
              रायपुर छ ग
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नारी शक्ति देपहिचान

पावो में जब बेड़ियां ,बनी नही पहचान 
संकट में अस्तित्व जब , लिया तभी संज्ञान ।

कठपुतली बन घूमती, समझ सकी न  चाल 
मानव है मादा नही, किया यही ऐलान ।

नारी नर की खान है, प्रतिभा क्षमता वान
पीढ़ियों को जन्म दिया,पालन पोषण ज्ञान।

खुद पर रख विश्वास वह ,चली गगन के पार
पदतल भी समतल नही, चढती है सोपान।

अब नारी दुर्गा बनी,अष्टभुजी अवतार
काट रही है बेड़िया ,देती शक्ति प्रमाण।

कुशल प्रबंधन वह करे,नही मानती हार
किया देहरी पार  जब, पग पग पर तूफ़ान।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर(रायपुर)।
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सावन गीत (16 मात्रा)

           (  1 )
लो झूम के आया सावन
बहती पुरवा जग हर्षावन।

उमड़ घुमड़ के बरसे बादल
नीर पीर मन हरे सुहावन।

हरित परिधान पहनी धरती
सावन तो है अति मन भावन।

घर घर  में रौनक है छाई
बिटिया आई तीज मनावन।

खिल गई गलियां पीहर की
  बूंदे  थिरकें  धूम मचावन।

मिली हैं सखियां बचपन की
मिल बैठी हैं मंगल गावन ।

बहती पुरवा जग हर्षावन।

उमड़ घुमड़ के बरसे बादल
नीर पीर मन हरे सुहावन।

हरित परिधान पहनी धरती
सावन तो है अति मन भावन।

घर घर  में रौनक है छाई
बिटिया आई तीज मनावन।

खिल गई गलियां पीहर की
  बूंदे  थिरकें  धूम मचावन।

मिली हैं सखियां बचपन की
मिल बैठी हैं मंगल गावन ।

     बूटे  सज गये मेंहदी के 
लगते हैं सबको मन भावन।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
16  ,7,2020
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                  (2)
     ऋतु  सावन की है मन भावन
       आई   सखियां तीज मनावन ।
         तितली भौरें कली फूल सब
           लगते  सबके मन हर्षावन ।
      खिल खिल करें गली पीहर की
         चली सभी श्रृंगार  सजावन।
             बैठी सब दरबार लगा के
           मेंहदी कला लगी दिखावन।
           बनते चित्र अनेक हाथों में
              बूटों में  झांके  हैं साजन
             कहीं नाम लिखती हैं प्रिय की
             कहीं   झांकते   राधा मोहन।
              मन बसी है खुशबू प्रीत की
             सावन महीना  है अति पावन।
    डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
       रायपुर छ ग
22 , 7   ,2020,

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