Thursday, 16 July 2020

गीतिका क्रमांक 5 :---- कविता को ढूँढ रही, शब्दों की डुगडुगी

मैं कविता को ढूंढ रही थी
 में वह घूम रही थी------
सावन की रिमझिम  बारिश में
खोई प्रियतम के सपनों में ।
पावस के उस नेह छुवन की
बून्द बून्द को चूम रही थी .......
मैं कविता को ...............

शरद ऋतु का मौसम आया
पूनम का चंदा हरषाया ।
उजला रूप बहुत मन भाया
नेह सुधा में भीग रही थी .......
मैं कविता को .........

.पछुआ तभी कँपाती आई
उसको भाए नहीं रजाई
चुन चुन पत्ते आग जलाई
प्रिय की पाती बांच रही थी.......
मैं कविता को ..........
.
भौरें गुन गुन करते आये
हवा बसंती मन को भाये
कोयल कुहके सरसों फूले
वन उपवन में झूम रही थी......
मैं कविता को ............

भीषण गर्मी जब है पड़ती
सूरज तपता धरती तपती 
कड़वी नीम की मीठी छांव में
झूला डाले झूल रही थी......
मैं कविता को ...........
डॉ चंद्रावती नगेश्वर 
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शब्दों की डुगडुगी बजाती हूँ
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
सुन लेना समझ लेना
लगे अच्छा तो चुन लेना.........
उम्र छोटी सी मेरी है
तजुर्बा खूब रखती हूं
सन्तुल मन्त्र जीवन का
पते की बात कहती हूँ
ध्यान इस पर लगाती हूँ .......
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
पिटारी में गीत गजल
कविता मैं रखती हूं।
मेहरबाँ लीजिये अब 
पेश करती हूं।
मनोरंजन हो आपका तो
ताली बजा देना।
हौसला इनसे पाती हूँ.....
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
खत्म ये खेल होता है
कहूँ क्या दिल ये रोता है।
मेहनत व्यर्थ ना जाये
खयाल इसका ही आता है।
नेह की चादर बिछाती हूँ .......
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
मदारी है जो ऊपर में
तमाश खूब दिखाता है।
बिना रस्सी औऱ डंडे के
सबको खूब नाचता है 
पल भर भी न भूलो  ये
यही मैं बात बताती हूँ ........
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
विदाई की ये बेला है 
नमन स्वीकार कर लेना है।
घुमंतू   हम  मुसाफिर तुम
मिलें कहीं तो  मुस्कुरा देना ।
प्रीत नगरी में बसेरा है 
पता इतना  लिखाती हूँ .....
भावों के करतब दिखाती हूँ.......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
छ   ग 
9425584403

इस गहरे सागर के जैसा
लहराता है 
अंतरतम में 
प्यार मेरा
अहो! सुंदरी
हाथ मे मेरे 
हाथ तेरा
ये गीली गीली रेत
उड़ते श्यामल केश
ये दूधिया गोरा रंग
केसरिया कपड़ों में
पारिजात के पुष्प सी
खिली हुई महक बिखेरे
मेरे जीवन मे आई हो
कोई खुशी तेरे कदमों से
नरम रेत सी खिसक न जाये
 कण कण को सहेज रखूंगा
ओ मेरी सिंड्रेला 
पलकों में तुझे बिठाउँगा

चन्द्रावती नागेश्वर
सेंटाक्लारा U S A

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.तथा मंच को सादर समर्पित रचना। 
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* गीतिका * 
बावली सी चल पड़ी हूँ, चाँद पूनम का  दिखा है
बावरा मन कह रहा है , चाँद पूनम का दिखा है।

ज्वार मन में उठ रहा है, प्रिय मिलन की आस जागी
 सागर मचल व्याकुल करे , चाँद पूनम का दिखा है।

 रोक सकता है नहीं तूफ़ां , चल पड़े हैं ये कदम जो
 धड़कनें वश में नहीं हैं ,चाँद पूनम का दिखा है ।

 रेत पसरी बेसुधी में  ,     चूमती मेरे कदम को
 दूर से प्रियतम पुकारे  , चाँद पूनम का दिखा है।

आज  कागा द्वार बोला ,      मन्नतें पूरी करो प्रभु
रात उजली मन प्रफुल्लित , चाँद पूनम का दिखा है।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर    छ ग
दिनांक 29 , 4,  2021
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मुक्तक लोक- चित्र मंथन समारोह -
 न  समझो तुम हमे अबला , नहीं कमजोर हैं हम तो
 कमी नहीं  है हिम्मत की , बहुत पुरजोर हैं हम तो ।

  सिंधु को पार करने का , निकाले राह ऐसी  हैं 
 करें मजबूत  रिश्तों को  , प्रीत की डोर हैं हम तो।

खोने को कहाँ कुछ शेष , नहीं भयभीत  हम भय से
 हमीं तो चाँद तारे हैं  ,  नई इक भोर हैं हम तो ।

तोड़ दिया जंजीरों को ,  नया इतिहास रचते हैं
स्वयं ही दीप हैं खुद के ,   तमस रिपु घोर हैं हम तो

 इक मंजिल पर रुकें नहीं, नित नित नव पथ गढ़ें सदा 
थाम  हौसलों के ध्वज को, प्रसन्न विभोर हैं हम तो।

पाकर मंजिल को अपने ,  सजग सतर्क हमे रहना
जग हित का दायित्व लिए ,उफनते ज्वार हैं हम तो।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपु   छ ग
1 , 09  , 2021
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हम तुम बिंदु बन जाएँ तो 
एक सीध में आ जाएँ तो 
बन जाएं मिल कर रेखा 
मन विकार मिट जाये तो 
छोटी सी एक खड़ी रेखा 
दायें शून्य लगाते जाएँ तो 
मन चाहे मूल्य बढ़ाते जाएँ 
सुख समृद्धि मिलती जाएँ 
ये रेखा ही दीवार बनाये 
इस रेखा की सुंदर तस्वीर 
मन में घर कर जाये 
जीवन की रेखा बन जाये 
भाग्य लेख किसने देखा
हाथों की जीवन रेखा 
न घटती है न बढ़ती 
 सतकर्म करें इन हाथों से
है अमिट लेख कर्मों का 

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ ग

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