लघुकथा लोक ---समारोह29 / 【प्रथम】
आदरणीय संचालक महोदय,आदरणीय संरक्षक महोदय एवं कथाप्रेमी मित्रों को सादर---
शीर्षक ---- *एंटीक पीस मृदंग*
जेठू का भतीजा राजधानी रायपुर के अत्याधुनिक फ्लैट में रहता है ।जेठू पहली बार अपने गांव से अपने मित्र के साथ राज धानी रायपुर में छत्तीसगढ़ का राज्य उत्सव देखने आया है। दोनों मित्र एक रिश्तेदार के घर ठहरे हैं ।रोज सुबह शहर में घूमने निकल जाते।
आज दोपहर में उन्होंने देखा कि कलेक्टर बंगले की सफाई हो रही है।चारदीवारी के बाहर कूढ़े के ढेर में वहां के नौकर छोटे बड़े दो मृदंग,शहनाई ,बाँस बाजाआदि फेंक दिए हैं।जेठू सन्तू दोनो मित्रों ने उन्हें उठा लिया। अपने अंगोछे से पोंछकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वे उसे बजाने लगे।
उसकी मनमोहक। आवाज सुनकर आने जाने वाले मन्त्र मुग्ध होकर आसपास खड़े हो गए। नए कलेक्टर साहब की गाड़ी भी वहां से गुजरी। अपने नए एलाट हुए बंगले से फेके कबाड़ के करिश्मे ने उन्हें भी आकर्षित किया।
उनके जेहन में बचपन की कुछ कुछ बातें उभरने लगी ।बस्तर के दशहरा का मेला,नृत्य गीत ,मृदंग की
थाप ।उन्होंने उन वादकों को अपने बंगले में बुलवाया।और परिचय पूछा।
जेठूराम के परदादा बस्तर के सघन वनो के बीच बसे बरतुला गांव के मुखिया थे।वैसे तो जेठू ढोल मृदंग शहनाई सभी वाद्य बजा लेते हैं। लेकिन उन्हें मृदंग विशेष पसन्द था।बस्तर में दस दिनों तक दशहरा का उत्सव चलता है ।
आदिवासी संस्कृति के खुलकर दर्शन होते है। इस महापर्व मे गांव भर के लोगों का बस्तर के राजा की ओर से महाभोज का आयोजन किया जाता था। विशेष वेषभूषा में आदिवासी नृत्य ,कर्मा, सैला नृत्य लोक गीत ददरिया प्रतियोगिता की होती। जेठूअपने पिता,काका, के साथ आदिवासी पोशाक पहन गले में मृदंग की रस्सी लटका कर झूम के नाचा करता था।
उनके जाने के बाद कलेक्टर साहब सोचने लगे --- जीवन एक वाद्य ही तो है। जिसका संगीत जीवन में माधुर्य बन सकता है।
चूंकि लोग इसे बजाना नहीँ सीख पाते तो दुख, दर्द ,पीड़ा ,हिंसा शत्रुता की विसंगति मेंडूबे रहते हैं
जीवन सबको को मिला है।कई लोग इसे बजाना सीखते हैं कुछ निपुण हो कर उसके जरिये अपनी पहचान बना लेते हैं। कुछ लोगों के लिए कबाड़ ,कुछ के लिए सजावटी एंटीक पीस बन जाता है......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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*: तिजाही लेवाल *
हर विवाहिता बहने बेटियां तीज के 2-3 पहले ही अपने भाई या पिता की बड़ी बेसब्री से प्रतिक्षा करने लगती हैं।भादों महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को व्रत रखा जाता है । यह व्रत छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मायके में रखने का रिवाज है । गोमती को भी अपने भाई की प्रतीक्षा है ।उसके सगे भाई तो नहीं है ।पर ममेरे,चचेरे भाई जरूर हैं।
वह तो दो दिन पहले से ही अपना सामान बांध कर तैयार बैठी है।तीन दिन पहले से ही उसके पति अपनी बहनों को लिवाकर ले आये हैं। ससुराल में लगभग सभी बहन बेटियां घर आ गई हैंऔर बहुएं मायके जा चुकी हैं।
उसकी ननदें मायके में आकर कल से ही माँ के साथ तरह तरह के तिजाही पकवान बनाने में लगी हैं। ठेठरी ,खुरमी,अनरसे की महक पूरे मोहल्ले में फैल रही है। गोमती घर के काम तो करती जा रही है।पर पूरे समय उसकी आंखें,औऱ कान दरवाजे की ओर लगे हैं। कि शायद अब कोई आया ----शायद कुंडी खटकी ----
उसे न भूख लगती ,न प्यास।गोमती केलिए यह पहला तीज पर्व है । मायके जाने की तीव्र ललक बनी हुई है।
अब आज का दोपहर भी बीत गया....
उसके मायके से कोई नहीं आया ।
बहन ,बेटियों का तीज में लेवाल का न आना ये दर्शाताहै। कि मायके में उसकी इज्जत कम हो गई।
गोमती के आंसू रुक नहीं रहे हैं ,क्या करे वह ? शाम ढलने के साथ ही मोटर सायकल में उसका ममेरा भाई आया और उसे उसके नानी के घर लिवाकर ले गया ।
वहाँ उसे बताया गया कि उसके पिताजी किसी तरह पुणे से लौट आए हैं । सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं उनकी B P बढ़ गई है। जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।
उपवास के दूसरे दिन पिताजी इस दुनियां से विदा हो गए ।बेटी को देख भी नहीं पाए ।पर
तिजाही लेवाल भेज कर बेटी के सम्मान को कम नहीं होने दिया .......
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
शंकर नगर रायपुर
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