दिन बुधवार---स्वतन्त्र दोहे
हाथों में भूगोल है,नजरों में आकाश
अहंकार के फेर में,होता महा विनाश ।
जब जब शिवता मौन थी,पुरुष काम का दास
रीति नीति बिन लोग सब ,छल बल आये रास
सबके हित की सोच कर,करें विघ्न का नाश
सबका मिले सुकर्म तो , बिखरे कर्म प्रकाश
सब मिल कर के ठान लें, हो पुरजोर प्रयास
सब का हो सहयोग तो,बने नया इतिहास ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
15 , 10 2022
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नमन दोहालय
शीर्षक - नित्य, नित सदा,,,,,
जनम जनम से दूर हैं ,रही न उसकी याद
मन के भीतर बैठ कर ,नित करता सम्वाद ।
नित नित आगे बढ़ रहे,सारे जग के लोग
फिर हम पीछे क्यों हुये, लगा नकल का रोग ।
गहरी सांसे तो सदा , अन्तस का वरदान
तन मन को ताजा करें,लगता प्रभु में ध्यान ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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स्वतन्त्र दोहे
खुशबू अपने देश की,होली का त्यौहार
रंग लिये खुशियां खड़ी,बांटे सबको प्यार ।l
रंग बिरंगे लोग हैं,उड़ता रंग गुलाल
हवा बावरी हो गई,चूमे सबके गाल.
धूम मची है रंग की,बजते ढोल मृदंग
गली गली में उड़ रहे, बड़े अनूठे रंग ।
दिवस फूल से खिल गये, चढ़ा बसन्ती रंग
हवा नशीली हो गई,मचा रही हुड़दंग
लाल हरे पीले सभी, मिल जाएँ जब संग
इस होली में देखना, खूब जमेगा रंग.
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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साप्ताहिक आयोजन 2020 (रवि वार)
कलम चढा लें सान पर,तीखी कर लें धार
जन जागृति का लक्ष्य ले,आओ करें विचार
बुझती चिंतन आग है, जला सकें इक बार
लेखन कर्म सफल बनें ,इस पर करें विचार
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन
साप्ताहिक आयोजन -क्रमांक 201--स्वतन्त्र दोहे----
बुध से शुक्र-------
फूल सी नाजुक बिटिया, हमको इस पर नाज
इसकी क्षमता देख कर ,अचरज होता आज
समय चक्र रुकता नहीं, करलो कोटि उपाय
नब्ज समय की पकड़ लें ,इक पल व्यर्थ न जाय
नदिया के दो कूल हैं,बहे बीच में धार
जीवन तो इक नाव है,सुख दुख दो पतवार
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन,U S A
स्वतन्त्र दोहे -दिन शुक्र वार का शुक्रिया
सभी को प्रातः नमन
क्षितिज बिखेरे लालिमा, बांधे बन्दनवार
सूरज का शुभ आगमन,करना है सत्कार
पंख पसारे उड़ चला,मेघों के उस पार
सूरज छूना चाहता, कोशिश है बेकार
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन, नार्थ स्टेशन
19 ,1 ,2018
शीत लहर से कांपती,खूब जड़ाती रात
धुंध कोहरा सब चले, हिम की चली बरात.
साप्ताहिक आयोजन गुरु , शुक्र
स्वतन्त्र दोहे ----
फूल शूल दोनों रहें, इक दूजे के संग
अलग अलग हैं रूप गुण, करते कभी न जंग
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन
साथ में देवे तकदीर हमारी
कभी धनी अब भिखारी
ताल पोखरे सूख रहे सब
अब आई कूपों की बारी
एक अकेली नारी हूं मैं
घात में बैठे सभी शिकारी
जब से तुम परदेश गए हो
सूद खोर हड़पे खेती बारी
कोर्ट कचहरी के चक्कर में
बिक गए घर के लोटा थारी
डॉ चंद्रावती नागेश्वर