,कुण्डलिया छंद
1 रचते हैं कवि छंद जो,महक बिखेरे मन्द
जग में भरी है खुशबू , झरता मधु मकरन्द ।
झरता मधु मकरन्द , मुदित है जग का कन कन
सुन्दर भरे विचार , झूमे हैं गन सब रसिक जन ।
रस में डूबे भाव , सुमन मन के हैं खिलते
रचना में भर प्राण ,सुन्दर छन्द हैं रचते ।
2 सभी फूल खिल खिल हँसे, महका सारा बाग
भँवरे तितली झूम के, गाते मीठे राग ।
गाते मीठे राग , गन्ध से पूरित सुमन हैं
रंग रंग के फूल , करते प्रभु को नमन हैं
कहती चन्द्रा रोज , पुष्प तो नादान अभी
चहके सारा बाग, हँसे खिल खिल फूल सभी ।
3, भारत की जो संस्कृति,गहन समंदर जान
रहते सारे लोग है , एक कुटुम्ब समान ।
एक कुटुम्ब समान, प्रेम से सारे रहते
है यह देश महान, सोच पर हित की रखते ।
बांटे सबको ज्ञान, सोच रखे हिफाजत की
जन जन कर्म प्रधान ,यही छवि है भारत की ।
4 के हम तो लहरों पर चलें,करते सभी सवाल
मिला गमो से हौसला, मन में यही खयाल ।
मन में यही खयाल, साथ हैं मित्र हमारे
मन में भरा उमंग, निकट हैं अपने सारे ।
चन्द्रा खुश है आज, साथ हो मिलकर तुम तो
खुद को दें परवान ,चलें लहरों पर हम तो ।
5 हरे पेड़ अब कट रहे,गांव हुए वीरान
अपने में डूबे सभी,धरती के इंसान ।
धरती के इंसान, हानि खुद की करते हैं
अहंकार में डूब, बाद में दुख सहते हैं ।
अब तो मनवा चेत, वृक्ष लता हित कुछ करे
धरती कहे पुकार, मन ही सबका दुख हरे ।
6 लिखते हैं कवि छंद जो,मलय पवन जस मन
खुशबू जग में है बसी ,झरता मधु मकरन्द ।
झरता मधु मकरन्द, मुदित है जग का कन कन
सुन्दर भरें विचार,रसिक झूमे हैं जन मन।
लिपटे रस में भाव,छंद के बंद मचलते
रचना में भर प्राण , छंद वे सुन्दर लिखते ।
राधा हिन्दी साहित्य की सबसे अधिक रोमांटिक नायिका है, जो जयदेव, चंडीदास, विद्यापति और सूरदास की काव्यधारा में सरोज की तरह विकसित हुई है। जयदेव की राधा प्रेमविहुला है- प्रगलभा है। गीतगोविन्द ने ही सबसे पहले राधिका का स्पष्ट नुपुरसिंजन गाया। विद्यापति की राधा में रूप लावण्य की दीप्ति है- उसमें जैसा रूप है वैसा ही है उसके हृदय की लीला, उसका विभ्रम।
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